यूपी में सख्त हुए हड़ताल के नियम: नई श्रम संहिता का प्रभाव

यूपी में सख्त हुए हड़ताल के नियम: नई श्रम संहिता का प्रभाव

Strike rules tightened in UP

Strike Rules Tightened In UP

Strike rules tightened in UP : उत्तर प्रदेश में नई श्रम संहिता लागू होने के बाद हड़ताल और श्रमिक प्रबंधन से जुड़े नियम पहले की तुलना में अधिक सख्त और सुव्यवस्थित हो गए हैं। इसका उद्देश्य औद्योगिक अनुशासन को मजबूत करते हुए श्रमिकों और उद्योगों के बीच बेहतर संतुलन बनाना है।

हड़ताल और छंटनी से जुड़े नए प्रावधान

प्रदेश में अब बिना 14 दिन की पूर्व सूचना के किसी भी प्रकार की हड़ताल या तालाबंदी करना पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। सामूहिक अवकाश को भी हड़ताल की परिभाषा में शामिल कर दिया गया है जिससे अनियमित बंदी पर नियंत्रण रखा जा सके।
नई संहिता के अनुसार 300 से अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को किसी भी छंटनी या संस्थान को बंद करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। इससे अचानक होने वाली छंटनी पर रोक लगेगी और श्रमिकों की नौकरी सुरक्षा मजबूत होगी।

श्रम कानूनों के अनुपालन में सुधार

श्रम मंत्री अनिल राजभर के अनुसार 21 नवंबर से लागू नई संहिताओं ने कानूनों का पालन आसान बनाया है। श्रमिक हितों को सुरक्षित रखते हुए उद्योगों के लिए भी प्रक्रियाओं को सरल किया गया है। समन्वय बढ़ाने के लिए शिकायत परितोष समिति, वार्ताकारी परिषद और दो सदस्यीय औद्योगिक अधिकरण जैसी नई संस्थाओं का गठन किया गया है।
अब न्यूनतम वेतन सभी संगठित और असंगठित क्षेत्रों में समान रूप से लागू होगा। किसी कर्मचारी की सेवा समाप्ति या त्यागपत्र की स्थिति में दो दिनों के भीतर सभी देयकों का भुगतान अनिवार्य कर दिया गया है।

कर्मचारियों को मिले नए अधिकार

नए श्रम कानूनों में महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर और सुरक्षा प्रदान करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। इससे महिलाओं की रोजगार संभावनाएँ और आय में वृद्धि होने की उम्मीद है।
महिलाएं अपनी सहमति से रात की शिफ्ट में भी काम कर सकेंगी। महत्वपूर्ण प्रावधानों में समान कार्य के लिए समान वेतन, 26 सप्ताह का सवेतन मातृत्व अवकाश, शिशुगृह सुविधाओं की अनिवार्य उपलब्धता, तथा वर्क-फ्रॉम-होम के विकल्प शामिल किए गए हैं।

गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स की कानूनी पहचान

पहली बार अस्थाई कर्मियों, गिग वर्कर्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले श्रमिकों को कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है। इन्हें अब विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में शामिल किया जाएगा।
एग्रीगेटर कंपनियों को अपने वार्षिक कारोबार का 1-2% एक विशेष कल्याण कोष में जमा करना होगा, जिसकी सीमा कुल भुगतान के अधिकतम 5% तक ही रहेगी। इससे इन श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा को नई मजबूती मिलेगी।

संभावित प्रभाव

भत्तों की गणना में बदलाव की वजह से वेतन का आधार घटा है, जिससे मातृत्व लाभ की कुल राशि कम हो सकती है। पहले भत्ते वेतन का हिस्सा बनते थे, जिससे लाभ का आधार बड़ा रहता था।

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का उद्देश्य मातृत्व सुरक्षा को कम करना नहीं बल्कि उसे बनाए रखना है। इस विषय पर कानूनी बहस की संभावना है और उम्मीद है कि सरकार ऐसे नियम लाएगी जिनसे पूर्व लाभ प्रभावित न हों।